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अ॒ग्नि॒ष्वा॒त्तानृ॑तु॒मतो॑ हवामहे नाराश॒ꣳसे सो॑मपी॒थं यऽआ॒शुः। ते नो॒ विप्रा॑सः सु॒हवा॑ भवन्तु व॒य स्या॑म॒ पत॑यो रयी॒णाम् ॥६१ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ॒ग्नि॒ष्वा॒त्तान्। अ॒ग्नि॒स्वा॒त्तानित्य॑ग्निऽस्वा॒त्तान्। ऋ॒तु॒मत॒ इत्यृ॑तु॒ऽमतः॑। ह॒वा॒म॒हे॒। ना॒रा॒श॒ꣳसे। सो॒म॒पी॒थमिति॑ सोमऽपी॒थम्। ये। आ॒शुः। ते। नः॒। विप्रा॑सः। सु॒हवा॒ इति॑ सु॒ऽहवाः॑। भ॒व॒न्तु॒। व॒यम्। स्या॒म॒। पत॑यः। र॒यी॒णाम्। ॥६१ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:19» मन्त्र:61


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

माता-पिता और सन्तानों को परस्पर क्या करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (ये) जो (सोमपीथम्) सोम आदि उत्तम ओषधिरस को (आशुः) पीवें, जिन (ऋतुमतः) प्रशंसित वसन्तादि ऋतु में उत्तम कर्म करनेवाले (अग्निष्वात्तान्) अच्छे प्रकार अग्निविद्या को जाननेहारे पिता आदि ज्ञानियों को हम लोग (नाराशंसे) मनुष्यों के प्रशंसारूप सत्कार के व्यवहार में (हवामहे) बुलाते हैं, (ते) वे (विप्रासः) बुद्धिमान् लोग (नः) हमारे लिये (सुहवाः) अच्छे दान देनेहारे (भवन्तु) हों और (वयम्) हम उनकी कृपा से (रयीणाम्) धनों के (पतयः) स्वामी (स्याम) होवें ॥६१ ॥
भावार्थभाषाः - सन्तान लोग पदार्थविद्या और देश, काल के जानने और प्रशंसित औषधियों के रस को सेवन करनेहारे, विद्या और अवस्था में वृद्ध पिता आदि को सत्कार के अर्थ बुला के, उनके सहाय से धनादि ऐश्वर्य्यवाले हों ॥६१ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पितृसन्तानैरितेतरं किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

अन्वय:

(अग्निष्वात्तान्) सुष्ठुगृहीताऽग्निविद्यान् (ऋतुमतः) प्रशस्ता वसन्तादय ऋतवो विद्यन्ते येषां तान् (हवामहे) (नाराशंसे) नराणां प्रशंसामये सत्कारव्यवहारे (सोमपीथम्) सोमपानम् (ये) (आशुः) अश्नीयुः (ते) (नः) अस्मभ्यम् (विप्रासः) मेधाविनः (सुहवाः) सुष्ठुदानाः (भवन्तु) (वयम्) (स्याम) (पतयः) स्वामिनः (रयीणाम्) धनानाम् ॥६१ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - ये सोमपीथमाशुर्यानृतुमतोऽग्निष्वात्तान् पितॄन् वयं नराशंसे हवामहे, ते विप्रासो नः सुहवा भवन्तु, वयं च तत्कृपातो रयीणां पतयः स्याम ॥६१ ॥
भावार्थभाषाः - सन्तानाः पदार्थविद्याविदो देशकालज्ञान् प्रशस्तौषधिरससेवकान् विद्यावयोवृद्धान् सत्कारार्थमाहूय तत्सहायेन धनाद्यैश्वर्य्यवन्तो भवन्तु ॥६१ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - पदार्थविद्या व देशकाल परिस्थिती जाणून उत्तम औषधांच्या रसाचे सेवन करणारे व विद्यायुक्त आणि वयोवृद्ध असणारे पिता इत्यादींचा संतानांनी सत्कार करावा. त्यांना आमंत्रित करून त्यांच्या साह्याने धन वगैरे ऐश्वर्य प्राप्त करावे.